Pitru Paksha 2025: पितृ दोष से मुक्ति दिलाएगा श्राद्ध, जानें तारीखें, महत्व और उपाय!

Pitru Paksha: पितृ पक्ष का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. पितृ पक्ष में पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूजन किया जाता है. पितृ पक्ष में पितरों के प्रति आदर-भाव प्रकट किया जाता है. पितृ पक्ष या श्राद्ध करीब 16 दिनों के होते हैं.
पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि इस बार पितृ पक्ष का आरंभ 7 सितंबर से हो रहा है जो 21 सितंबर तक चलेगा. लेकिन पूर्णिमा का श्राद्ध 7 सितंबर को होगा. देवी-देवताओं के अलावा पितर भी हमारे जीवन के लिए, मंगलकार्यों के लिए बहुत जरूरी हैं.
हमारे ये पूर्वज पितृ लोक में वास करते हैं और श्राद्ध पक्ष के 15 दिनों के लिए वे धरती पर आते हैं. इसीलिए उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण, अर्पण और दान देने की परंपरा है. ऐसा करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और उन्हें मोक्ष मिलता है. वह हमें आशीर्वाद देकर जाते हैं.
पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण आदि क्रम किए जाते हैं. पितृ पक्ष के दौरान पितर लोक से पितर धरती लोक पर आते हैं. इसलिए इस दौरान उनके नाम से पूजा पाठ करना उनकी आत्मा को शांति देता है. साथ ही उन्हें मोक्ष मिलता है.
पितृपक्ष जिसे श्राद्ध भी कहा जाता है अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है. पितरों की पूजा और तर्पण आदि कार्यों के लिए श्राद्ध पक्ष बहुत ही उत्तम माना जाता है. पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज पितृ लोक से धरती लोक पर आते हैं.
इसलिए इन दिनों में उनके श्राद्ध, तर्पण, और पिंडदान आदि करने का विधान है. ऐसी मान्यता है कि पितरों का श्राद्ध आदि करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
कुंडली में हो सकता है पितृ दोष: ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि पितृपक्ष पितरों को समर्पित है. इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है. पंचांग के अनुसार पितृपक्ष की शुरुआत भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से होती है और अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर इसका समापन होता है.
पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक याद करके उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है. पितृपक्ष में पितरों को तर्पण देने और श्राद्ध कर्म करने से उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दौरान न केवल पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाता है, बल्कि उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए भी किया जाता है.
पितृपक्ष में श्रद्धा पूर्वक अपने पूर्वजों को जल देने का विधान है. पितरों की कृपा नहीं हो, तो जातक की कुंडली में पितृ दोष लगता है. ऐसे लोगों का जीवन दुखों और परेशानियों से भर जाता है. घर परिवार में सुख-शांति नहीं रहती है. आकस्मिक दुर्घटनाएं होती हैं. वैवाहिक जीवन में भी परेशानियां होने लगती हैं. लिहाजा, पितरों की शांति के लिए श्राद्धपक्ष के ये 15 दिन बहुत विशेष होते हैं.
श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करना: ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करने से है. सनातन मान्यता के अनुसार जो परिजन अपना देह त्यागकर चले गए हैं, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ जो तर्पण किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है.
ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें. जिस किसी के परिजन चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित हों, बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष उनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितर कहा जाता है.
पितृपक्ष में मृत्युलोक से पितर पृथ्वी पर आते है और अपने परिवार के लोगों को आशीर्वाद देते हैं. पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनको तर्पण किया जाता है. पितरों के प्रसन्न होने पर घर पर सुख शान्ति आती है.
पिंडदान, तर्पण और हवन: पितृपक्ष में हर साल पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण और हवन आदि किया जाता है. सभी लोग अपने-अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि के अनुसारए उनका श्राद्ध करते हैं. माना जाता है कि जो लोग पितृपक्ष में पितरों का तर्पण नहीं करते उन्हें पितृदोष लगता है.
श्राद्ध करने से उनकी आत्माे को तृप्ति और शांति मिलती है. वे आप पर प्रसन्न होकर पूरे परिवार को आशीर्वाद देते हैं. हर साल लोग अपने पितरों की आत्मार की शांति के लिए गया जाकर पिंडदान करते हैं.
पितृ पक्ष: भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि साल 2025 में पितृ पक्ष 7 सितंबर से शुरू होंगे और इनका समापन 21 सितंबर 2025 को होगा. शास्त्रों के अनुसार 16 दिनों तक चलने वाले पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान आदि क्रियाएं की जाती है.
पितृ पक्ष में पितरों के श्राद्ध वाले दिन कौआ को भोजन कराने की परंपरा है. मान्यता है कि कौवे के माध्यम से भोजन पितरों तक पहुंच जाता है. मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितर कौवे के रूप में पृथ्वी पर आते हैं.
नहीं होते हैं मांगलिक कार्य: भविष्यवक्ता डॉ अनीष व्यास ने बताया कि पितृों के समर्पित इन दिनों में हर दिन उनके लिए खाना निकाला जाता है. इसके साथ ही उनकी तिथि पर बह्मणों को भोज कराया जाता है. इन 5 दिनों में कोई शुभ कार्य जैसे, गृह प्रवेश, कानछेदन, मुंडन, शादी, विवाह नहीं कराए जाते.
इसके साथ ही इन दिनों में न कोई नया कपड़ा खरीदा जाता और न ही पहना जाता है. पितृ पक्ष में लोग अपने पितरों के तर्पण के लिए पिंडदान, हवन भी कराते हैं.
दोपहर में करना चाहिए तर्पण-अर्पण: कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि देवी-देवताओं की पूजा-पाठ सुबह और शाम को की जाती है. पितरों के लिए दोपहर का समय होता है. दोपहर में करीब 12:00 बजे श्राद्ध कर्म किया जा सकता है. सुबह नित्यकर्म और स्नान आदि के बाद पितरों का तर्पण करना चाहिए.
भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास बता रहे है कब है कौनसा श्राद्ध.
श्राद्ध की तिथियां
- 7 सितंबर – पूर्णिमा श्राद्ध
- 8 सितंबर – प्रतिपदा श्राद्ध ,
- 9 सितंबर – द्वितीया श्राद्ध
- 10 सितंबर – तृतीया श्राद्ध – चतुर्थी श्राद्ध
- 11 सितंबर – पंचमी श्राद्ध
- 12 सितंबर – षष्ठी श्राद्ध
- 13 सितंबर – सप्तमी श्राद्ध
- 14 सितंबर – अष्टमी श्राद्ध
- 15 सितंबर – नवमी श्राद्ध
- 16 सितंबर – दशमी श्राद्ध
- 17 सितंबर – एकादशी श्राद्ध
- 18 सितंबर – द्वादशी श्राद्ध
- 19 सितंबर – त्रयोदशी श्राद्ध
- 20 सितंबर – चतुर्दशी श्राद्ध
- 21 सितंबर – सर्व पितृ अमावस्या
- 22 सितंबर – मातामह नान श्राद्ध
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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