Quran: कुरान में ‘काफिर’ शब्द का अर्थ क्या है? जानिए अल्लाह को न मानने वालों के बारे में चौंकाने वाले खुलासे!

Quran: कुरान के अनुसार, काफिर वह व्यक्ति है जो अल्लाह की सच्चाई को छुपाता है या उससे इनकार करता है, भले ही उसे अल्लाह की सच्चाई का ज्ञान हो. यह शब्द ऐसे व्यक्ति के लिए इस्तेमाल होता है जो अल्लाह (ईश्वर) पर विश्वास नहीं करता या उसके बनाए नियमों को ठुकराता है.
काफिर शब्द का अर्थ “छिपाने वाला” है और ये लोग अल्लाह के भेजे हुए पैगंबर और आसमानी किताबों पर विश्वास नहीं करते हैं.
काफिर क्या है ?
इस्लामी शब्दावली में, “काफ़िर” (अरबी: الكافر) एक ऐसा व्यक्ति है जो अल्लाह पर विश्वास नहीं करता है. उसकी एकता और अधिकार को नकारता है और इस्लाम के संदेश को सत्य के रूप में स्वीकार नहीं करता है.
इस शब्द का अर्थ ‘सत्य को छुपाने वाला’ या ‘अस्वीकार करने वाला’ भी होता है, जो इस्लाम के सिद्धांतों की सच्चाई को ढकने का भाव व्यक्त करता है. यह शब्द मुख्य रूप से उन लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो इस्लाम को नहीं मानते.
जो व्यक्ति अल्लाह के अस्तित्व को नहीं मानता, उसे कुरान की भाषा में काफिर कहा गया है. काफिर धातु से बना है, जिसका अर्थ ‘ढकना’ है, जिसका अर्थ है कि एक काफिर इस्लाम की सच्चाई को देखता तो है, लेकिन उसे ढक लेता है.
सत्य को छिपाना
‘काफिर’ शब्द का मूल अर्थ ‘छिपाने वाला’ या ‘ढकने वाला’ है. यह विचार तब धार्मिक अर्थ में विकसित हुआ, जब यह उन लोगों के लिए इस्तेमाल होने लगा जो ईश्वर के सत्य को छिपाते या अस्वीकार करते हैं.
अल्लाह का इंकार
मुख्य रूप से, जो व्यक्ति अल्लाह को नहीं मानता या उसकी शक्ति और अधिकार को नहीं मानता, उसे काफिर कहा जाता है.
कुरान में काफिर के बारे में क्या कहा गया है?
कुरान के कुछ आयतों में काफिर के प्रति कड़ा रूख अपनाने जैसे उनसे लड़ने या उनका विरोध करने का उल्लेख है, जबकि अन्य आयतें शांति और क्षमा की ओर भी इशारा करती हैं, खासकर अगर काफिर अपने व्यवहार में सुधार करें.
सख्ती का आदेश
कुछ आयतें (जैसे सूरा 2, आयत 191) में काफिरों को जहां भी पाए जाएं, उन्हें मार डालने का आदेश दिया गया है, जो दुश्मन के खिलाफ सख्ती का प्रतीक है.
जिहाद और संघर्ष
कुछ कुरानिक आयतों में मुसलमानों को काफिरों के खिलाफ लड़ने या ‘जिहाद’ करने का आदेश दिया गया है, खासकर जब वे शांति स्थापित न करें या षड्यंत्र रचें.
तौबा और क्षमा
हालांकि, उन्हीं आयतों में यह भी कहा गया है कि अगर काफिर तौबा कर लें, नमाज़ कायम करें और ज़कात (दान) दें, तो उनके साथ दया का व्यवहार किया जाए, क्योंकि अल्लाह बहुत क्षमाशील और दयालु है.
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