भारतीय कंपनियों की फाइलों पर कुंडली मारकर क्यों बैठा है चीन का मंत्रालय? क्या है मंशा


चीन में एक ‘खास चीज’ का खनन और उत्पादन होता है. इस ‘खास चीज’ के बिना आधुनिक दुनिया की कल्पना अधूरी है. इलेक्ट्रिक वाहनों से लेकर स्मार्टफोन, पवन टर्बाइनों से लेकर मिसाइल सिस्टम तक हर जगह इनका इस्तेमाल होता है. यदि ये ‘खास चीज’ न हो तो न गाड़ियां चलेंगी, न फोन बजेंगे, और न ही सैटेलाइट घूमेंगे. अब दिक्कत ये है कि चीन में इसका प्रोडक्शन तो हो रहा है, लेकिन उसने दुनिया के दूसरे देशों को इसे भेजने से इनकार कर दिया है. पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत में भी इसकी किल्लत हो गई है और हमारी इंडस्ट्री, खासकर ऑटो इंडस्ट्री, प्रभावित हो रही है. आप सोच रहे होंगे आखिर ये ‘खास चीज’ है क्या.

ये है ‘रेयर अर्थ मैग्नेट’ (Rare Earth Magnet). ये शक्तिशाली मैग्नेट्स बड़ी-बड़ी मशीनों की जान हैं. भारत की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के लिए ये मैग्नेट उतने ही जरूरी हैं, जितना दिल के लिए धड़कन. लेकिन, चीन ने इन मैग्नेट्स को बाहर भेजने (निर्यात) पर रोक लगा दी है, जिससे भारत की ऑटो इंडस्ट्री बुरी तरह प्रभावित हो रही है. भारत की हालांकि 9 कंपनियों को चीन के दूतावास से वह मैग्नेट मंगाने (आयात) की मंजूरी मिल चुकी है, लेकिन उनकी फाइलों पर अब भी चीन के वाणिज्य मंत्रालय की अंतिम मुहर नहीं लगी है. कुल मिलाकर, भारत को अब भी ये जरूरी मैग्नेट्स नहीं मिल रहे. अगर ये स्थिति और कुछ और समय के लिए बनी रही तो गाड़ियों का उत्पादन रुक सकता है.

दो महीनों से नहीं हो रहा आयात

बता दें कि पिछले लगभग दो महीनों से भारत में रेयर अर्थ मैग्नेट्स का आयात बिल्कुल ठप है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऑटो इंडस्ट्री ने सरकार को साफ तौर पर चेतावनी दी है कि अगर जल्द सप्लाई शुरू नहीं हुई, तो फैक्ट्रियों में काम ठप हो जाएगा. एक अधिकारी ने कहा कि भले ही ये मैग्नेट कम कीमत के हों, लेकिन अगर एक भी जरूरी हिस्सा नहीं मिला, तो पूरी गाड़ी नहीं बन सकती. सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) ने सरकार को बताया है कि अब इन मैग्नेट्स का स्टॉक खत्म होने को है.

भारत ने साल 2024-25 में 870 टन रेयर अर्थ मैग्नेट्स मंगाए थे, जिनकी कीमत 306 करोड़ रुपये थी. लेकिन सिर्फ ऑटो सेक्टर ही नहीं, बल्कि एयरोस्पेस, क्लीन एनर्जी और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे दूसरे क्षेत्र भी इससे प्रभावित हो रहे हैं. क्योंकि ये मैग्नेट्स किसी भी इलेक्ट्रिक सर्किट वाले प्रोडक्ट के लिए जरूरी होते हैं.

दुनिया के कई देशों में संकट

ये संकट सिर्फ भारत में नहीं है. अमेरिका, जर्मनी और जापान जैसे देशों की इंडस्ट्रीज भी चीन की इस रोक के चलते परेशान हैं. चीन ने 4 अप्रैल को एक नई नीति के तहत इन चीज़ों के निर्यात पर नियंत्रण लगाया, ताकि अपनी ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ को मजबूत कर सके. चीन दुनियाभर में रेयर अर्थ मैटेरियल का लगभग 70 फीसदी खनन और 90 फीसदी उत्पादन करता है. अब उसने समेरियम, गैडोलिनियम, टरबियम, डिस्प्रोसियम, ल्यूटेटियम, स्कैंडियम और इट्रियम जैसे कई कीमती तत्वों पर एक्सपोर्ट कंट्रोल लगा दिया है.

भारत और चीन के बीच पहले से ही कारोबारी और राजनीतिक रिश्ते तनावपूर्ण हैं, जो इस मसले को और जटिल बना रहे हैं. भारत की 17 कंपनियों ने चीन में आवेदन भेजा था, जिनमें से सिर्फ 9 कंपनियों को मंजूरी मिली है. इसमें कॉन्टिनेंटल ऑटोमोटिव, हिताची एस्टेमो, माहले इलेक्ट्रिक ड्राइव्स, वरोक इंजीनियरिंग और फ्लैश इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी बड़ी कंपनियां शामिल हैं. बाकी कंपनियों जैसे मिंडा इंस्ट्रूमेंट्स, निप्पॉन ऑडियोट्रॉनिक्स और एचएमसी एमएम ऑटो के आवेदन अब भी लंबित हैं.

सरकार अब कूटनीतिक चैनलों से बीजिंग से बातचीत करने की कोशिश कर रही है, ताकि यह संकट हल हो सके. जब तक समाधान नहीं निकलता, तब तक लाखों लोगों की नौकरियों और सपनों पर खतरा बना रहेगा.



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