Shiva: शिव ने हलाहल विष क्यों नहीं निगला? रहस्य जानकर चौंक जाएंगे!

Shiva halahal poison mythology: इस बात को हर कोई जानता है कि समुद्र मंथन के दौरान अत्यंत घातक हलाहल विष निकला था, जिसे शिव ने पीकर देवताओं और असुरों की रक्षा की थी. लेकिन बहुत से लोगों को यह बात पता नहीं होगी कि उन्होंने विष को पिया जरूर था, लेकिन उसे पूरा निगला नहीं था. बल्कि, उसे अपने कंठ में धारण कर लिया था.
जिस कारण उनका गला गहरे नीले रंग का हो गया, और उनका नाम नीलकंठ पड़ा. लेकिन अब सवाल ये उठता है कि भगवान शिव ने इसे क्यों नहीं निगला? हलाहल विष जिसमें पूरी की पूरी आकाशगंगा को जलाने की शक्ति थी, शिव ने उसे गले में क्यों धारण किया?
जगद्गुरु आदि शंकराचार्य शिवानंद लाहिड़ी ने दिया जवाब
इस सवाल का उत्तर देते हुए जगद्गुरु आदि शंकराचार्य शिवानंद लाहिड़ी (श्लोक 31) में उत्तर देते हैं कि, भगवान शिव ने विष को अपने कंठ में रख लिया लेकिन निगला नहीं, ऐसा इसलिए क्योंकि भगवान शिव के पेट में समस्त लोक समाहित हैं, जो हलाहल विष को निगलने पर नष्ट हो जाती.
यदि विष उनके उदर में चला जाता तो सारी सृष्टि पल भर में ही नष्ट हो जाती. यहां तक शिव पुराण में भी कुछ ऐसी बातों का जिक्र किया गया है, जो रहस्यों और चमत्कारों के बारे में बताती है.
पौराणिक कथाएं क्या कहती हैं?
पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक बार असुरों के गुरु शुक्राचार्य शिव के पेट में फंस गए थे. तब उन्होंने देखा कि शिव के गर्भ में स्थित भार्गव, निर्जन वायु की तरह बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ रहने हैं. शिव के पेट में उन्हें पाताल समेत साल लोक दिखाई दिए. उन्होंने इंद्र, आदित्य और देवियों के विधियों लोकों के साथ-साथ प्रमथों और असुरों के बीच युद्ध भी देखा.
अब आप कल्पना करें यदि शिव ने विष को पेट में जाने दिया होता तो सारी सृष्टि नष्ट हो जाती. तब महादेव ने वही किया जो केवल वही कर सकते थे, उन्होंने बेहिसाब दर्द और जलन को महसूस किया और विष को गले में रोके रखा. शिव जीवन और मृत्यु के बीच ढाल बन गए.
शिव की ये कथा, कहानी मात्र ही नहीं अपितु अपने आपमें शिव के वास्तव रूप का वर्णन भी करती है. शिव ब्रह्मांड के रक्षक होने के साथ-साथ अंहकार का नाश करने वाले भी हैं. शिव सभी प्राणियों के रक्षा करते हैं. इसीलिए उन्हें प्यार से भोलेनाथ भी कहा जाता है.
समुद्र मंथन में 14 रत्न कौन-कौन से थे?
- हलाहल विष
- कामधेनु गाय
- सात मुख वाला दिव्य घोड़ा
- ऐरावत हाथी
- कल्पवृक्ष
- अप्सराएं
- चंद्रमा
- लक्ष्मी माता
- वारुणी देवी
- पारिजात वृक्ष
- शंख
- धन्वंतरि देव अमृत कलश
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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