Pitru Paksha 2025: पितृ पक्ष में प्याज-लहसुन से क्यों बचें? जानें श्राद्ध में सात्विक भोजन का महत्व और चंद्र ग्रहण का संयोग!


Pitru paksha 2025: इस साल 7 सितंबर, रविवार से पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है. विशेष बात यह है कि इसी दिन वर्ष 2025 का आखिरी चंद्र ग्रहण भी लगेगा. हिंदू शास्त्रों में पितृपक्ष का समय बेहद पवित्र माना गया है और इस दौरान आहार-विहार को लेकर खास नियम बताए गए हैं.

मान्यता है कि इन दिनों केवल सात्त्विक भोजन ग्रहण करना ही चाहिए.

हिंदू परंपरा के अनुसार भोजन को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है-

  • सात्त्विक भोजन – शुद्ध, हल्का और मन को शांत रखने वाला.
  • राजसिक भोजन – जो उत्साह, इच्छा और उग्रता को बढ़ाता है.
  • तामसिक भोजन – जो आलस्य, गुस्सा और नकारात्मक विचारों को जन्म देता है.

यही कारण है कि पितृपक्ष जैसे धार्मिक समय में तामसिक और राजसिक भोजन का त्याग कर सात्त्विक आहार को अपनाने की परंपरा है.

प्याज-लहसुन का परहेज क्यों ज़रूरी?
पितृपक्ष को श्राद्ध पक्ष या महालय भी कहा जाता है. यह समय भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक चलता है, यानी लगभग 16 दिन. इस अवधि में तर्पण और श्राद्ध के माध्यम से पितरों को प्रसन्न किया जाता है, जिससे उनकी कृपा से परिवार में आयु, आरोग्य और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है.

लेकिन धर्मशास्त्रों में साफ बताया गया है कि इन दिनों प्याज और लहसुन का सेवन वर्जित है. इसका कारण यह है कि इन्हें राजसिक और तामसिक आहार की श्रेणी में रखा गया है. माना जाता है कि इनका उपयोग श्राद्ध की शुद्धता को नष्ट करता है और पितरों की तृप्ति अधूरी रह जाती है.

मन और शरीर पर प्रभाव
प्याज और लहसुन सामान्य जीवन में स्वास्थ्य के लिए उपयोगी माने जाते हैं, लेकिन हिंदू शास्त्र में पितृपक्ष के दौरान इसे वर्जित माना गया है. कहा जाता है कि ये पदार्थ ऊर्जा को नीचे की ओर खींचते हैं, मन में बेचैनी और वासना को बढ़ावा देते हैं. जिससे ध्यान या पूजा में एकाग्रता भंग होती है.

पितृपक्ष का मुख्य उद्देश्य है कि मन को पवित्र बनाना और पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करना है. ऐसे में तामसिक भोजन साधना में बाधा डालता है और मनुष्य को सांसारिक इच्छाओं की ओर ले जाता है.

प्याज और लहसुन की पौराणिक कथा
प्राचीन मान्यताओं में प्याज और लहसुन की उत्पत्ति को समुद्र मंथन की घटना से जोड़ा गया है. कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत निकालने के लिए समुद्र का मंथन किया, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत बांटने का कार्य संभाला. इसी दौरान एक असुर ने छलपूर्वक देवताओं के बीच बैठकर अमृत पीने का प्रयास किया.

सूर्य और चंद्र देव ने इसकी शिकायत भगवान विष्णु को की. तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उस असुर का सिर अलग कर दिया. उसके सिर और धड़ से राहु और केतु का जन्म हुआ. मान्यता है कि उसी असुर के शरीर से गिरे रक्त की बूंदों से प्याज और लहसुन की उत्पत्ति हुई.

इसी कारण इन दोनों को तामसिक और अशुद्ध आहार की श्रेणी में रखा गया है. धार्मिक अनुष्ठान, व्रत और श्राद्ध जैसे पवित्र अवसरों पर इनका उपयोग वर्जित माना जाता है, क्योंकि माना जाता है कि इनके सेवन से शुद्धता और आध्यात्मिक वातावरण भंग होते हैं.

आयुर्वेद और संतों की दृष्टि
आयुर्वेदि में प्याज और लहसुन को तीखे, गर्म और उत्तेजक गुणों वाला बताया गया है. यह इंद्रियों को उत्तेजित करते है और क्रोध, आलस्य व वासना को भी बढ़ाते हैं. यही कारण है कि संत, साधु और योगी इनसे दूरी बनाए रखते हैं और सात्त्विक भोजन का ही सेवन करते हैं ताकि उनकी साधना में कोई बाधा न आए.

पितृपक्ष का उद्देश्य
शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष के दौरान किए गए श्राद्ध और तर्पण से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसे कृतज्ञता का समय भी कहा जाता है, जब पितरों की आत्माएं अपने वंशजों से तर्पण की अपेक्षा में धरती पर आती हैं. तब संतुष्ट पितृ परिवार को दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.

इसलिए इस पवित्र काल में फल, दूध, दही, मौसमी सब्ज़ियां और अनाज जैसे सात्त्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए. ऐसा आहार शरीर को हल्का, मन को शांत और साधना को सफल बनाता है.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.



Source link


Discover more from News Hub

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Referral link

Discover more from News Hub

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading