Ajit Doval Russia Visit: टैरिफ पर तकरार, ट्रंप का दूत भी प्लेन में सवार, तभी अजित डोभाल क्यों पहुंचे दोस्त के द्वार? जानिए अंदर की बात


अमेरिका और भारत के बीच बढ़ते तनाव और रूस को लेकर लगातार तीखी होती बयानबाज़ी के बीच भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल रूस पहुंचे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ताजा चेतावनियों और तीखी टिप्पणियों के बाद डोभाल की इस यात्रा की अहमियत अब कहीं ज़्यादा रणनीतिक और राजनीतिक हो गई है.

अजित डोभाल का रूस दौरा वैसे तो पहले से ही तय था, लेकिन उनकी यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब डोनाल्ड ट्रंप भारत पर रूसी तेल और रक्षा उपकरणों की खरीद को लेकर खुलकर हमला बोल रहे हैं.

‘ट्रंप ने पहले दी धमकी, फिर रूस भेजा दूत’

डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर किए पोस्ट में भारत पर आरोप लगाया कि वह रूस से ‘भारी मात्रा में’ कच्चा तेल खरीदकर उसे बाज़ार में खूब मुनाफे पर बेच रहा है. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर भारत ने अपनी नीति नहीं बदली तो 24 घंटे के भीतर भारतीय वस्तुओं पर आयात शुल्क (टैरिफ) कई गुना बढ़ा दिए जाएंगे.

इसी बीच एक और अहम घटनाक्रम ने कूटनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है. अमेरिकी विशेष दूत स्टीव विटकॉफ़ भी इसी हफ्ते रूस पहुंचने वाले हैं. सूत्रों के अनुसार, विटकॉफ़ पहले ही अमेरिका से रवाना हो चुके हैं. अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने उनकी मॉस्को यात्रा की पुष्टि करते हुए कहा है कि वह रूसी नेतृत्व से मिलने जा रहे हैं, हालांकि बातचीत के एजेंडे का खुलासा नहीं किया गया.

डोभाल की यात्रा क्यों इतनी अहम?

अब सवाल यह उठता है कि ऐसे नाजुक समय में जब ट्रंप रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर यूक्रेन युद्ध को लेकर दबाव बना रहे हैं, और भारत पर दबाव डाल रहे हैं कि वह रूस से दूरी बनाए- तब भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का मॉस्को जाना महज संयोग है या रणनीतिक जवाब?

सूत्रों की मानें तो डोभाल की यह यात्रा कई परतों में बसी है. एक ओर जहां भारत और रूस के बीच रक्षा सहयोग और ऊर्जा सुरक्षा को लेकर गहन बातचीत होनी है, वहीं यह संदेश भी स्पष्ट है कि भारत किसी भी वैश्विक दबाव में आकर अपने रणनीतिक हितों से समझौता नहीं करेगा.

सूत्र बताते हैं कि डोभाल रूस के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों से बंद कमरे में बैठक करेंगे, जहां क्षेत्रीय स्थिरता, आतंकवाद विरोधी सहयोग और ऊर्जा आपूर्ति को लेकर चर्चा होनी तय है. यह वही मुद्दे हैं जिन पर अमेरिका भारत से संतुलन की उम्मीद करता है, लेकिन भारत ने बार-बार स्पष्ट किया है कि उसकी ऊर्जा जरूरतें और विदेश नीति उसके राष्ट्रीय हितों से संचालित होती है- न कि पश्चिमी दबावों से.

भारत ने अमेरिका को दिखाया आईना

ट्रंप की टिप्पणी पर भारत के विदेश मंत्रालय ने तीखी प्रतिक्रिया दी है, इसे ‘राजनीति से प्रेरित, अनुचित और बेबुनियाद’ बताया. मंत्रालय ने यह भी जोड़ा कि भारत का तेल आयात उसके घरेलू हितों और बाज़ार स्थिरता से जुड़ा है. इसके साथ ही यह भी याद दिलाया कि खुद अमेरिका सहित कई पश्चिमी देश आज भी रूस के साथ व्यापारिक संबंध रखते हैं.

इस पूरे घटनाक्रम के बीच अजीत डोभाल की मास्को यात्रा न सिर्फ भारत की रणनीतिक संप्रभुता का प्रतीक बन गई है, बल्कि यह संकेत भी दे रही है कि नई दिल्ली विश्व मंच पर अपनी स्वतंत्र भूमिका निभाने को प्रतिबद्ध है. इस माह के अंत में विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी रूस जाने वाले हैं, जो दिखाता है कि भारत और रूस के बीच उच्च स्तरीय संवाद की गति बनी रहेगी.

ऐसे में यह सवाल अब और भी अहम हो गया है: क्या अजीत डोभाल की मास्को मौजूदगी ट्रंप के ‘टैरिफ तीर’ का एक सधा हुआ जवाब है? जवाब शायद यही है- भारत दोस्त के द्वार पर खड़ा है, लेकिन किसी के दबाव में नहीं.



Source link


Discover more from News Hub

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Referral link

Discover more from News Hub

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading