Chandra Grahan 2025: चंद्र ग्रहण आखिर क्यों लगता है, जानिए पूरी कहानी


Chandra Grahan 2025: आज 7 सितंबर को साल 2025 का दूसरा चंद्र ग्रहण लगा है. जिसे इस साल का सबसे लंबा ग्रहण भी कहा जा रहा है. चंद्र ग्रहण रात 09:58 पर शुरू हुआ है और देर रात 01:26 पर समाप्त हो जाएगा. चंद्र ग्रहण की कुल अवधि 3 घंटे 26 मिनट रहेगी. वहीं इस पूर्ण चंद्र ग्रहण चांद लाल रंग का नजर आएगा.

चंद्र ग्रहण लगने की घटना विज्ञान और ज्योतिष में अलग-अलग मानी जाती है. धार्मिक दृष्टि से ग्रहण को अशुभ माना जाता है. इसके पीछ राहु-केतु की कथा बहुत प्रचलित है. ग्रहण की कथा स्कंद पुराण के अवंति खंड में दी गई है. आइए जानते हैं ग्रहण लगने की धार्मिक कथा के बारे में-

चंद्र ग्रहण की धार्मिक कहानी (Chandra Grahan 2025 Katha)

स्कंद पुराण के अनुसार चंद्र ग्रहण का संबंध राहु और केतु से जोड़ा जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, जिसमें अनेक दिव्य वस्तुएं प्राप्त हुई और अंत में अमृत कलश निकला  इसी अमृत के लिए समुद्र मंथन किया गया था. अमृत को पाने के लिए देवता और असुर के बीच विवाद हुआ.

विवाद को सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत पिलाना शुरू किया. लेकिन असुरों में से स्वर्भानु नाम का एक असुर ने देवता का वेष धारण कर देवताओं की पंक्ति में बैठ गया. अमृत उसके गले से नीचे उतरने ही वाला था कि सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया  और भगवान विष्णु को बता दिया.. क्रोधित होकर विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया.

लेकिन तब तक अमृत की कुछ बूंदें उसके गले तक पहुंच चुकी थीं, जिस कारण वह मरा नहीं, बल्कि दो हिस्सों में बंट गया. उसका सिर “राहु” और धड़ “केतु” कहलाया. ऐसा माना जाता है कि, इसके बाद से ही राहु और केतु ने सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मान लिया.

शत्रुता के कारण ही अमावस्या और पूर्णिमा पर राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा को ग्रसते हैं और तब ग्रहण लगता है. जब वे चंद्रमा को ग्रसते हैं तो चंद्र ग्रहण लगता है. इसलिए शास्त्रों में कहा गया है कि ग्रहण के समय राहु-केतु सक्रिय हो जाते हैं. इसलिए इस दौरान पूजा-पाठ, भोजन और शुभ कार्य वर्जित माने होते हैं. ग्रहण समाप्त होने के बाद स्नान किया जाता है और फिर पूजा की जाती है.

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