Lauh-e-Mahfuz: क्या आपकी ज़िंदगी पहले से लिखी जा चुकी है? जानिए रहस्यमयी किताब का गहरा राज़!


Lauh-Al-Mahfuz: लोह-ए-महफूज एक ऐसी रहस्यमयी किताब जिसका जिक्र सुनते ही इंसान का दिल कांप उठता है और दिमाग गहरे ख्यालों में डूब जाता है. माना जाता है कि लोह-ए-महफूज एक ऐसी तख्ती है, जिसमें पूरी कायनात की शुरुआत से लेकर अंत तक की तमाम बातें दर्ज हैं.

इसमें हर इंसान और जानवर की जिंदगी कैसे गुजरेगी और उसका अंजाम क्या होगा सब इसमें लिख दिया गया है. यह वो तख्ती है जिसे न बदला जा सकता है और न मिटाया जा सकता है. यही वजह है कि इसे सुनकर इंसान अपनी जिंदगी और तकदीर के मायनों पर सोचने को मजबूर हो जाता है. क्या वाकई हमारी हर सांस पहले से लिखी जा चुकी है? आइए जानते हैं कि आखिर लोह-ए-महफूज क्या है और क्यों इसे रहस्यमयी किताब कहा जाता है.

क्या है लोह-ए-महफूज?
इस्लामी तालीमात के मुताबिक लोह-ए-महफूज एक नूरानी और रूहानी तख्ती है, जिसमें पूरी कायनात का अतीत, वर्तमान और भविष्य दर्ज है. इस तख्ती में कायनात की शुरुआत से लेकर आखिर तक का पूरा हिसाब दर्ज है. इसमें इंसान और जानवरों की तकदीर तक लिखी हुई है.

कौन कब पैदा होगा, उसकी जिंदगी कैसे गुजरेगी, कितना रिज्क मिलेगा, कौन से हादसे सामने आएंगे और उसकी मौत कब और किस तरह होगी. यहां तक कि उसका अंजाम जन्नत होगा या जहन्नुम, सब कुछ पहले से इस तख्ती में लिखा हुआ है. यानी कह सकते हैं कि दुनिया का कोई भी छोटा या बड़ा राज ऐसा नहीं है जो इस तख्ती में न लिखा हो.

लोह-ए-महफूज किससे बना है और कहां है?
हजरत अब्दुल्लाह इब्न अब्बास रजि अल्लाहु तआला अन्हु के बयान के मुताबिक, अल्लाह तआला ने लोह-ए-महफूज को सफेद मोती से बनाया है. इसके किनारे लाल याकूत के बने हैं और इस पर लिखावट नूर से की गई है.

यह सातवें असमान पर मौजूद है और इसका फैलाव इतना बड़ा है कि उसकी चौड़ाई आसमान और जमीन के बीच की दूरी जितनी है. इसकी हिफाजत सिर्फ अल्लाह तआला करते हैं. कोई इंसान, जिन्न या फरिश्ता अपनी मर्जी से वहां नहीं पहुंच सकता. इसमें कयामत तक होने वाली सारी बातें पहले से लिखी जा चुकी हैं. 

आसमानी किताबों का जरिया 
मुफस्सिरीन का कहना है कि जितनी भी आसमानी किताबें रसूलों पर नाजिल हुईं, जैसे तौरात, जबूर, इंजील और कुरआन उनकी असली जड़ लोह-ए-महफूज है. यानी जो बातें इन किताबों में लिखी गईं, वे पहले से ही लोह-ए-महफूज में दर्ज थी.

इस्लाम में जिस तरह अल्लाह, उसके रसूलों, फरिश्तों और कयामत पर ईमान लाना जरूरी है, उसी तरह लोह-ए-महफूज पर यकीन करना भी ईमान का हिस्सा है. इसी वजह से कुरआन में इसे “उम्मुल किताब” कहा गया है, जिसका मतलब है किताबों की मां.

इसका मकसद यह बताना है कि इंसानों को राह दिखाने वाली हर आसमानी किताब अल्लाह के उसी असली जखीरे से आई है, जहां पूरी कायनात का हाल लिखा हुआ है.

कलम और लोह-ए-महफूज कैसे पैदा किए गए
अरबी जबान में लोह का मतलब है “तख्ती” और महफूज का मतलब है “वो चीज जिसकी हिफाजत की जाए”. यानी लोह-ए-महफूज वह तख्ती है जो हर तरह की गलती और शैतानों की पहुंच से बिल्कुल दूर और पाक है.

रिवायतों में आता है कि अल्लाह तआला ने जमीन और असमान बनाने से भी 50 हजार साल पहले लोह-ए-महफूज को पैदा किया. जब अल्लाह ने कलम और लोह-ए-महफूज को पैदा किया तो कलम को हुक्म दिया: “लिखो”. कलम ने पूछा: “या रब, मैं क्या लिखूं?” अल्लाह ने फरमाया: “कयामत तक जो कुछ भी होने वाला है, सब लिख दो.”

इस तरह कलम ने अल्लाह के हुक्म के मुताबिक, कायनात की हर बात लोह-ए-महफूज में लिख दी– जो कुछ अब तक हो चुका है और जो कुछ कयामत तक होने वाला है, सब कुछ इस तख्ती में दर्ज कर दिया गया.

इंसान की तकदीर और दुआ की ताकत
लोह-ए-महफूज में इंसान की पूरी जिंदगी, उसकी पैदाइश, मौत और हालात पहले से लिखे जा चुके हैं. लेकिन इस्लामी तालीमात के बताती हैं कि अल्लाह ने इंसान को दुआ, नेक अमल और तौबा की ताकत दी है, जिनके जरिए उसकी तकदीर में तब्दीली आ सकती है. यही अल्लाह की रहमत और इंसाफ की सबसे बड़ी निशानी है. यह इंसान को मायूसी से निकालकर उम्मीद, सुकून और बेहतर जिंदगी की राह दिखाती है.

रूहानी रहस्य या हकीकत 
लोह-ए-महफूज को लेकर लोगों की अलग-अलग राय है. बहुत से लोग इसे अल्लाह की तरफ से एक सच्चाई मानते हैं, जिसमें पूरी कायनात और हर इंसान की किस्मत का पूरा हिसाब दर्ज है. उनके लिए यह कोई कल्पना या अफसाना नहीं, बल्कि रूहानी हकीकत है.

वहीं, कुछ लोग इसे एक रहस्यमयी किस्सा समझते हैं, क्योंकि इतनी बड़ी बात को इंसानी दिमाग पूरी तरह पकड़ नहीं पाता. इसी वजह से यह मुद्दा हमेशा सवालों, तर्कों और बहस का कारण बनता है, और इंसान के दिमाग को सोचने पर मजबूर कर देता है.

खुदा की कुदरत का निशान 
कई आलिमों का कहना है कि लोह-ए-महफूज इंसानों के लिए अल्लाह की सबसे बड़ी निशानी है. इसमें लिखा गया हर लफ्ज यह बताता है कि इंसान की जिंदगी किसी इत्तेफाक या हादसे का नतीजा नहीं, बल्कि अल्लाह के प्लान का हिस्सा है.

यह तख्ती इंसान को याद दिलाती है कि उसका मकसद सिर्फ जीना नहीं बल्कि अपने रब की पहचान करना और उसके बताए रस्ते पर चलना है. यानी लोह-ए-महफूज अल्लाह की कुदरत और इंसान के असली मकसद दोनों की तरफ इशारा करती है.

ये भी पढ़ें: सूरह यासीन को बरकत की चाबी क्यों कहा गया है, जानें इसका रहस्य

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.



Source link


Discover more from News Hub

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Referral link

Discover more from News Hub

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading