Samvatsari Pratikraman (संवत्सरी प्रतिक्रमण) 2025 Time, Vidhi, Niyam, Tarika, Rules: Michhami Dukkadam 2025 Time, Message And Method


संवत्सरी प्रतिक्रमण 2025
Samvatsari Pratikraman 2025 Time: जैनियों का महापर्व है प्रयुषण। श्वेतांबर परम्परा में यह पर्व 8 दिन का मनाया जाता है जो 20 अगस्त से 27 अगस्त पूरे भारत में हर्ष से मनाया गया। प्रयुषण के अंतिम दिन को संवत्सरी के नाम से जाना जाता है जिस दिन सभी जैन प्रतिक्रमण करते है और वर्ष भर में किए गए सभी पापों का प्रायश्चित लेते है और अगले दिन क्षमायाचना का पर्व मनाया जाता है जिसमें सभी एक दूसरे को हाथ जोड़ कर मिच्छामि दुकदम अथवा उत्तम क्षमा बोलते है जिसका सामान्य अर्थ क्षमा मांगना है। जैनियों की ही दिगम्बर परम्परा में प्रयुषण पर्व 10 दिन मनाए जाते है और वो 28 अगस्त पंचमी से से 6 सितंबर अनंत चतुर्दशी तक तप संयम और त्याग के साथ मनाए जाएंगे। जैनियों में ये परम्परा अनंत काल से चलती आई है जिसका मूल भाव अपनी आत्मा के कल्याण हेतु और अंततः मोक्ष प्राप्ती के उद्देश्य से मन वचन और काया से यह पर्व मनाया जाता है। यहां हम आपको बताएंगे संवत्सरी प्रतिक्रमण की विधि।
Samvatsari Pratikraman 2025 Time (संवत्सरी प्रतिक्रमण समय 2025)
संवत्सरी प्रतिक्रमण अनुष्ठान आमतौर पर संध्या के समय किया जाता है क्योंकि प्रतिक्रमण का समय सूर्यास्त के बाद से लेकर रात 8 बजे तक माना जाता है। इस समय श्रावक लोग उपवास रखते हैं, मंदिर या उपाश्रय में जाकर सामूहिक रूप से प्रतिक्रमण करते हैं। लेकिन इसका सटीक समय जानने के लिए, अपने स्थानीय जैन केंद्र या समुदाय से परामर्श करना सबसे अच्छा है।
संवत्सरी प्रतिक्रमण क्या है (Samvatsari Pratikraman Kya Hai)
संवत्सरी प्रतिक्रमण एक वार्षिक जैन अनुष्ठान है जिसमें जैन धर्म के लोग अपने द्वारा किए गए पापों के लिए क्षमा मांगता है और भविष्य में उन्हें न दोहराने का संकल्प लेता है।
संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि (Samvatsari Pratikraman Vidhi)
संवत्सरी प्रतिक्रमण के लिए मंदिर या उपाश्रय जाएं, यदि संभव न हो तो घर पर शुद्ध स्थान पर बैठें। देव-गुरु-धर्म की वंदना करें। दीप प्रज्वलित करें और शांत भाव से बैठें। इसके बाद लोगस सूत्र, कयोत्सर्ग सूत्र, प्रतिक्रमण सूत्र, आलोचना सूत्र का पाठ करें। कायोत्सर्ग की स्थिति में बैठकर आत्मा का चिंतन करें और शरीर से निरपेक्ष होने का प्रयास करें। पूरे वर्ष में हुए अपराध, हिंसा, असत्य और परिग्रह की भावना का स्मरण करें। गुरु और धर्म के सम्मुख अपनी गलतियों को स्वीकार कर क्षमा मांगें। अंत में सभी जीवों से, परिवार और समाज से यह वचन कहें – “मिच्छामि दुक्कडं” – यदि मैंने मन, वचन या कर्म से किसी को दुःख दिया है तो मुझे क्षमा करें। इसी क्षमा-प्रार्थना के कारण यह पर्व क्षमावाणी पर्व कहलाता है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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