Karwa Chauth 2025: क्या आपको पता है की द्रौपदी भी रखती थी करक चतुर्थी (करवा चौथ) का व्रत? जानिए शास्त्रीय तथ्य



Karwa Chauth 2025: करक चतुर्थी, जिसे करवा चौथ के नाम से भी जाना जाता है, द्वापर युग से मनाई जाती आ रही है. इस व्रत का उल्लेख प्राचीन ग्रंथ व्रतोत्सव चंद्रिका (8.1, पृष्ठ 234, भारत धर्म प्रेस) में मिलता है.

कथा के अनुसार, एक बार जब अर्जुन किलागिरि गए, तो द्रौपदी चिंतित हो गईं. उन्होंने सोचा, “अर्जुन की अनुपस्थिति में अनेक बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं. अब मुझे क्या करना चाहिए?” इस चिंता से व्याकुल होकर द्रौपदी ने भगवान कृष्ण का ध्यान किया. हाथ जोड़कर उन्होंने प्रार्थना की, “हे प्रभु, कृपया मुझे शांति प्राप्त करने का कोई सरल उपाय बताएं.”

उनकी बात सुनकर भगवान कृष्ण बोले, “पार्वती ने भी महादेव से ऐसा ही प्रश्न पूछा था. तब शिव ने सभी बाधाओं को दूर करने वाले करवा चौथ व्रत का वर्णन किया.” फिर उन्होंने एक कथा सुनाई.

इंद्रप्रस्थ नगरी में वेदों की ध्वनियां गूंज उठीं. वहाँ वेद शर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण रहते थे. उनकी पत्नी लीलावती ने सात पुत्रों और एक पुत्री, वीरवती को जन्म दिया. वीरवती का विवाह एक योग्य ब्राह्मण से हुआ.

एक बार, वीरवती ने विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत रखा. लेकिन शाम को उसे भूख सताने लगी. उसकी व्यथा देखकर उसके भाइयों ने एक ऊँचे स्थान से एक उल्कापिंड जलाया. वीरवती ने उसे चाँद समझकर अर्घ्य दिया और व्रत समाप्त कर दिया. उसी क्षण उसके पति की मृत्यु हो गई.

वीरवती गहरे शोक में डूब गई और उसने एक वर्ष तक कठोर तप और उपवास किया. अगले वर्ष, करवा चौथ के अवसर पर, इंद्राणी और अन्य देवियाँ पृथ्वी पर आईं और बताया कि उसके पति की मृत्यु चाँद को अर्घ्य न देने के कारण हुई थी. अगले वर्ष वीरवती ने विधिपूर्वक व्रत रखा और देवियों ने पवित्र जल से उसके पति को पुनर्जीवित कर दिया.

कृष्ण ने द्रौपदी से कहा, “यदि तुम भी करवा चौथ का व्रत रखोगी, तो सभी कष्ट टल जाएँगे.” जब द्रौपदी ने यह व्रत रखा था, तब कौरव सेना पराजित हुई थी और पांडव विजयी हुए थे. इसलिए, यह व्रत महिलाओं के सौभाग्य, धन और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है.

करवा चौथ व्रत कैसे रखें?

तिथि: यह व्रत कार्तिक मास (कृष्ण पूर्वाविधा) की चतुर्थी को रखा जाता है. यदि चंद्रमा दो दिन दिखाई दे या न दिखाई दे, तो मातृविद्या के अनुसार पूर्वाविधा का व्रत रखना चाहिए.
पूजन सामग्री: भगवान शिव, कार्तिकेय और चंद्रमा की पूजा करनी चाहिए. प्रसाद में कच्चे करवा पर चीनी की चाशनी डालकर बनाए गए लड्डू या घी में पके हुए लड्डू शामिल हैं.
व्रती: यह व्रत विशेष रूप से सौभाग्यवती स्त्रियाँ या उस वर्ष विवाहित स्त्रियाँ रखती हैं. प्रसाद में 13 करवा/लड्डू, एक बर्तन, एक कपड़ा और पति के माता-पिता के लिए एक विशेष करवा शामिल होता है.

संकल्प और पूजा विधि:

  • प्रातःकाल नित्यकर्म और स्नान के बाद संकल्प लें: “माँ, सुख, सौभाग्य, पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति हो और सुख-शांति बनी रहे.”
  • रेत (सफेद मिट्टी) की वेदी पर पीपल का वृक्ष बनाएं.
  • उसके नीचे शिव-शिव और षण्मुख की मूर्ति या चित्र स्थापित करें.
  • मंत्रों से षोडशोपचार पूजा करें: “नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संततिं शुभम्. प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥”
  • शिव जी की पूजा ‘नमः शिवाय’ और भगवान कार्तिक जी की पूजा ‘षण्मुखाय नमः’ से करें.
  • नैवेद्य अर्पित करें और ब्राह्मण को दक्षिणा दें.
  • अंत में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करें और भोजन ग्रहण करें.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.



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