नोटबंदी लागू करने वाले RBI गवर्नर उर्जित पटेल बने IMF के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, कितनी पढ़ाई-लिखाई के बाद मिला यह पद?


भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर और नोटबंदी जैसे ऐतिहासिक फैसले में अहम भूमिका निभाने वाले उर्जित पटेल को अब एक और बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है. सरकार ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर नियुक्त किया है. यह पद पिछले कई महीनों से खाली पड़ा था.

कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने नोटिफिकेशन जारी कर इसकी पुष्टि की. इसमें कहा गया कि डॉ. उर्जित पटेल को तीन साल की अवधि के लिए IMF में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बनाया गया है. हालांकि अगर जरूरत पड़ी तो यह कार्यकाल आदेश के अनुसार कम या ज्यादा भी हो सकता है.

पूर्व RBI गवर्नर से IMF तक का सफर

उर्जित पटेल भारतीय रिजर्व बैंक के 24वें गवर्नर रहे. उन्होंने 4 सितंबर 2016 को पदभार संभाला था और दिसंबर 2018 तक इस पद पर बने रहे. उनके कार्यकाल के दौरान ही देश में नोटबंदी का बड़ा कदम उठाया गया, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था और आम लोगों के जीवन पर गहरा असर डाला. उस समय उर्जित पटेल की कार्यशैली और उनकी चुप्पी को लेकर कई बार चर्चा हुई, लेकिन उन्होंने हमेशा अपने फैसलों पर संयमित रुख बनाए रखा.

पढ़ाई-लिखाई में भी हमेशा अव्वल

उर्जित पटेल की एजुकेशन की बात करें तो उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से इकोनॉमिक्स में स्नातक की पढ़ाई की. इसके बाद 1986 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से एम.फिल. की डिग्री हासिल की. फिर उन्होंने अमेरिका की प्रतिष्ठित येल यूनिवर्सिटी से 1990 में पीएचडी (Economics में Doctorate) पूरी की.

इतना ही नहीं साल 2009 से वे वाशिंगटन स्थित ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन में नॉन-रेजिडेंट सीनियर फेलो के रूप में भी जुड़े हुए हैं. उनकी पढ़ाई और रिसर्च के कारण ही उन्हें दुनिया की कई महत्वपूर्ण आर्थिक संस्थाओं में काम करने का मौका मिला.

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क्यों खास है IMF में यह जिम्मेदारी

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) दुनिया की सबसे अहम वित्तीय संस्थाओं में से एक है, जिसका काम सदस्य देशों की आर्थिक नीतियों पर सलाह देना और जरूरत पड़ने पर उन्हें वित्तीय मदद उपलब्ध कराना है. IMF में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर का पद बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस पद पर बैठा व्यक्ति न केवल भारत बल्कि कई अन्य देशों के हितों का प्रतिनिधित्व करता है.
उर्जित पटेल इस पद के जरिए वैश्विक आर्थिक मंच पर भारत की आवाज और भी मजबूत करेंगे.

किनके बाद मिली ये जिम्मेदारी

यह पद कृष्णमूर्ति सुब्रमणियन के जाने के बाद से खाली पड़ा था. सुब्रमणियन इससे पहले भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रह चुके थे. उन्हें तीन साल का कार्यकाल मिला था, लेकिन उनकी नियुक्ति को सरकार ने छह महीने पहले ही खत्म कर दिया.

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