
नई किताब में यह भी उल्लेख है कि ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति भारत से लूटे गए धन के कारण संभव हो सकी. यह विचार प्रसिद्ध अमेरिकी इतिहासकार विल ड्यूरेंट ने पहले रखा था, जिसे अब पाठ्यपुस्तक में शामिल किया गया है. इसके अलावा, प्रसिद्ध भारतीय अर्थशास्त्री उषा पटनायक के आंकड़े भी दिए गए हैं, जिनके अनुसार 1765 से 1938 के बीच ब्रिटेन ने भारत से लगभग 45 ट्रिलियन डॉलर की संपत्ति लूटी जो ब्रिटेन की 2023 की जीडीपी का लगभग 13 गुना है.
विकास के नाम पर शोषण
पुस्तक में यह भी स्पष्ट किया गया है कि अंग्रेजों ने जो रेल, टेलीग्राफ और अन्य आधारभूत ढांचे बनाए, वे भारतीयों के टैक्स से फंड किए गए. ब्रिटिश युद्धों की लागत तक भारतीयों से वसूली गई. इन निर्माणों को अब तक “विकास” के प्रतीक के रूप में दिखाया जाता रहा है, लेकिन वास्तव में इससे भारत के स्थानीय उद्योगों को भारी नुकसान हुआ और पारंपरिक शिक्षा प्रणाली भी बर्बाद हुई.
प्रशासन और शिक्षा में बदलाव
नई किताब में बताया गया है कि ब्रिटिशों द्वारा लागू की गई अदालत और प्रशासन व्यवस्था भारतीयों के लिए पूरी तरह से विदेशी थी, जिससे आम लोग इस व्यवस्था से कट गए. पारंपरिक पाठशालाओं और मदरसों को खत्म कर अंग्रेजी शिक्षा लागू की गई, जिससे समाज में अंग्रेजी जानने वाले उच्च वर्ग और स्थानीय भाषाओं में पढ़े आम लोगों के बीच एक सामाजिक विभाजन पैदा हुआ.
मराठा साम्राज्य को मिला उचित स्थान
इस बार मराठा साम्राज्य पर एक विशेष अध्याय जोड़ा गया है. इसमें छत्रपति शिवाजी को एक दूरदर्शी और शक्तिशाली शासक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिन्होंने मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया, भारतीय भाषाओं को बढ़ावा दिया और एक मजबूत नौसेना का गठन किया. साथ ही अहिल्याबाई होल्कर को भी एक प्रमुख शासिका के रूप में दर्शाया गया है, जिन्होंने कई प्रसिद्ध मंदिरों की मरम्मत कराई.
ईसाई धर्म परिवर्तन भी था एक उद्देश्य
पाठ्यपुस्तक में यह भी बताया गया है कि यूरोपीय उपनिवेशवादियों का एक उद्देश्य भारतीयों को ईसाई धर्म में धर्मांतरित करना भी था. उपनिवेशवाद के कारण भारत ने अपनी स्वतंत्रता खोई, संसाधनों की लूट हुई, पारंपरिक जीवनशैली टूटी और विदेशी संस्कृति थोपने की कोशिश की गई.
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