
हरिहर अवतार भगवान शिव और भगवान विष्णु के एकीकरण का प्रतीक है, जिसमें शिव और विष्णु एक ही शरीर में आधे-आधे दिखाई देते हैं. हरिहर में ‘हरि’ का अर्थ है विष्णु और ‘हर’ का अर्थ शिव से है. धार्मिक दृष्टि के साथ ही भगवान का यह अवतार हमें यह भी सीख देता है कि, एक ही रूप में परमात्मा के अलग-अलग पहलू हैं. लेकिन हरिहर अवतार का आखिर क्या रहस्य है आइये जानते हैं. साथ ही सावन में इस अवतार की पूजा करने का क्या धार्मिक महत्व है.
कैसा है भगवान हरिहर का स्वरूप
‘शंख पद्म पराहस्तौ, त्रिशूल डमरु स्तथा ।
विश्वेश्वरम् वासुदेवाय हरिहर: नमोऽस्तुते‘ ।।
अर्थ है कि- भगवान हरिहर के दाहिने भाग में रुद्र के चिह्न है और वाम भाग में विष्णु के. वे दाहिने हाथ में शूल और ऋष्टि धारण करते हैं और बाएं हाथ मे गदा व चक्र. दाहिनी ओर गौरी और वाम भाग में लक्ष्मी विराजती हैं.
भगवान शिव और विष्णु के हरिहर अवतार से जुड़ी प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने शिव की स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने दोनों को वरदान देने का वचन दिया. वरदान में ब्रह्मा जी ने मांगा की शिवजी उनके पुत्र बनें. जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की तो इसमें असफल हो गए और फिर शिवजी ने यह वरदान पूरा किया.
दूसरी ओर भगवान विष्णु ने शिव की भक्ति मांगी. तब महादेव ने प्रसन्न होकर विष्णु जी को अपना आधा शरीर दे दिया, जिसके बाद हरिहर स्वरूप का जन्म हुआ. इस अवतार में दाहिना भाग शिव और बायां भाग विष्णुजी का है.
हरिहर स्वरूप का महत्व
भगवान विष्णु और शिव के हरिहर अवतार का महत्व बहुत गहरा है. क्योंकि दोनों ही देवता अपने अलग-अलग गुणों के लिए पूजे जाते हैं. शिव संहारक हैं और विष्णु पालनकर्ता कहलाते हैं. इसलिए भगवान का हरिहर अवतार यह बताता है कि, संहार और पालन के जरिए ही सृष्टि का चक्र पूरा होता है.
सावन में हरिहर अवतार की पूजा का महत्व
सावन के पवित्र माह में शिव और विष्णु के हरिहर अवतार के पूजन का महत्व धार्मिक दृष्टि के काफी बढ़ जाता है. इसका कारण यह है कि, सावन का महीना शिव जी को समर्पित है. वहीं सावन चातुर्मास की अवधि में आता है. धार्मिक मान्यता है कि, चातुर्मास की अवधि में जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं, तब सृष्टि के देखरेख की जिम्मेदारी शिवजी पर होती है. कहा जाता है कि, सावन में शिवजी का वास भी भूलोक में होता है. यही कारण है कि सावन महीने में हरिहर अवतार की पूजा से शिव और विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है.
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