
सरकार का फैसला, वक्त की जरूरत
पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले एक्सपर्ट चंद्रा भूषण का मानना है कि एसी पर टंपरेचर कैप लगाने का ये प्रस्ताव एक सिंपल रूल नहीं है, बल्कि ये एक बड़ा कदम है जिससे भारत में एनर्जी पॉलिसी और डेवलपमेंट से जुड़े इश्यूज़ पर चर्चा शुरू हो सकती है. उनका कहना है कि जैसे-जैसे शहरीकरण और मिडिल क्लास बढ़ रहा है, वैसे-वैसे एसी की डिमांड भी तेज़ी से बढ़ रही है. उदाहरण के लिए, साल 2022 में करीब 7.5 मिलियन एसी बिके थे और 2024 में यह डबल होकर 15 मिलियन हो चुके हैं. एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर यही ट्रेंड रहा तो 2030 तक भारत दुनिया का सबसे बड़ा एसी मार्केट बन जाएगा.
भूषण का मानना है कि अब एसी कोई लग्ज़री नहीं रह गया है. यह हेल्थ, काम करने की क्षमता और सामाजिक संतुलन के लिए ज़रूरी बन गया है. इसलिए इस तरह के सुझाव, जैसे टंपरेचर की लिमिट, जरूरी हैं… ताकि हम एक बड़ी बहस की शुरुआत कर सकें. जैसे कि कौन लोग हैं जिन्हें सबसे ज़्यादा ठंडी हवा की जरूरत है? क्या हम सब तक कूलिंग पहुंचा सकते हैं? क्या ऐसी टेक्नोलॉजी अपनाई जा सकती है जिससे एसी कम बिजली में ज्यादा काम करे?
यह सतही हल, असली प्रॉब्लम वही की वही रहेगी
अब बात करते हैं इस प्रस्ताव के दूसरे पहलू की. कुछ एक्सपर्ट्स को लगता है कि एसी का टंपरेचर लिमिट करने से सिर्फ सतह पर हल निकलेगा, असली प्रॉब्लम वही की वही रहेगी. अर्थशास्त्री त्रिशा सरकार इसी बात को लेकर चिंता जताती हैं. वह दिल्ली की गर्मी का उदाहरण देती हैं, जब लोग थोड़ी सी ठंडक पाने के लिए मॉल, मेट्रो स्टेशन और ऐसी दुकानों में जाते हैं जहां एसी लगा हो. अगर एसी को 20 डिग्री से नीचे न करने का नियम लागू हो गया तो सबसे ज़्यादा दिक्कत उन्हीं लोगों को होगी जो पहले से ही गर्मी से परेशान हैं और जिनके पास ठंडी हवा पाने के सीमित रास्ते हैं.
उनका कहना है कि हमें सिर्फ एसी पर ध्यान देने के बजाय पूरे शहर की डिजाइन पर ध्यान देना चाहिए. अगर हम ऐसे शहर बनाएं जहां हरे-भरे पेड़ हों, पानी के स्रोत हों, सड़कों पर छांव हो, और ऐसी बिल्डिंग्स हों जो प्राकृतिक तरीके से ठंडी रहें, तो एसी की जरूरत अपने आप कम हो जाएगी. आज शहरों में कांच और सीमेंट से बनी ऊंची इमारतें गर्मी को कैद कर लेती हैं, जिससे शहर और ज्यादा गर्म हो जाते हैं और एसी की डिमांड और भी बढ़ती है.
इसलिए जरूरी है कि सरकार सिर्फ एसी पर टंपरेचर कैप लगाने तक सीमित न रहे, बल्कि बड़े लेवल पर सोचे. हमें चाहिए कि हम एनर्जी सेविंग टेक्नोलॉजी को बढ़ावा दें, शहरों की प्लानिंग को बेहतर बनाएं और सबके लिए कूलिंग की सुविधा सुनिश्चित करें, खासकर गरीब और कमजोर तबकों के लिए.
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